नीलू रंजन, नई दिल्ली। एनएससीएन (मुइवा) भले ही नागालैंड के लिए अलग झंडे और अलग संविधान की मांग पर अड़ा हो, लेकिन मोदी सरकार इसे मानने के लिए कतई तैयार नहीं है। पिछले कुछ दिनों से एनएससीएन (मुइवा) के नेता दिल्ली में खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों के साथ बातचीत कर अलग संविधान और अलग झंडे की मांग पर मनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए साफ-साफ मना किया जा चुका है।

एनएससीएन (मुइवा) समेत विभिन्न नागा अलगाववादी संगठनों के साथ बातचीत की जानकारी रखने वाले उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार नागा नेता आईबी के वरिष्ठ अधिकारियों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि नागा आंदोलन के शुरू होने के समय से ही उनका एक झंडा रहा है, जो नागा आंदोलन का प्रतीक बन चुका है। इसे छोड़ने पर पिछले सात दशक की नागा आंदोलन की पहचान खत्म हो जाएगी। यही स्थिति नागा आंदोलन से जुड़े संविधान की भी है।

वहीं केंद्र सरकार की ओर से नागा नेताओं को यह बताया गया है पिछले साल ही संसद ने भारी बहुमत से जम्मू-कश्मीर में अलग झंडे और अलग संवैधानिक प्रावधान को खत्म किया है। ऐसे में एक नए राज्य के लिए ऐसे ही प्रावधान को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। नागा नेताओं को कहा गया है कि वे निजी तौर अपनी पार्टी के लिए इस झंडे का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन यह समझौता का हिस्सा नहीं होगा।

2015 में केंद्र और एनएससीएन के बीच समझौते के व्यापक फ्रेमवर्क पर सहमति बनी थी

ध्यान देने की बात है कि 2015 में केंद्र सरकार और एनएससीएन के बीच समझौते के व्यापक फ्रेमवर्क पर सहमति बनी थी। इसके बाद नागा विवाद के स्थायी समाधान की उम्मीद बढ़ गई थी। पिछले पांच सालों में इसमें काफी प्रगति भी हुई और विवाद के लगभग सारे बिन्दुओं पर सहमति बन गई, लेकिन अलग झंडे और अलग संविधान को लेकर मामला उलझ गया है।

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