नई दिल्‍ली, एजेंसी। विशेषज्ञों की सिफारिशों के आधार पर सीरम इंस्‍टीट्यूट की वैक्‍सीन कोविशील्‍ड की दो खुराक के बीच अंतराल को 4 सप्ताह से बढ़ाकर 8 सप्‍ताह किया जाएगा। इस बारे में केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश को लिखा है। इससे यह वैक्‍सीन ज्‍यादा कारगर रहेगी।

विशेषज्ञ ग्रुप की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया फैसला

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय द्वारा जानकारी दी गई है कि NTAGI और वैक्सीनेशन एक्सपर्ट ग्रुप की ताजा रिसर्च के बाद ये फैसला लिया जा रहा है, जिसका अमल राज्य सरकारों को करना है। इसमें दावा किया गया है कि अगर वैक्सीन की दूसरी डोज़ 6 से 8 हफ्ते के बीच में दी जाती है, तो ये ज्‍यादा लाभदायक होगी। ज्ञात हो कि पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा कोविशील्ड वैक्सीन को तैयार किया गया है। भारत में वैक्‍सीनेशन का मिशन 16 जनवरी को शुरू किया गया था। दूसरा फेज 1 मार्च से शुरू हुआ था। अब तक देश में साढ़े 4 करोड़ लोगों को वैक्‍सीन की डोज दी जा चुकी है।

एक खुराक से नहीं मिलती पूरी सुरक्षा

ब्रिटेन की सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन की दूसरी खुराक देने में 3 से 4 सप्ताह के अंतर की जगह 12 सप्ताह का अंतराल रखने का फैसला लिया है। दिसंबर 2020 में प्रकाशित आंकड़े के अनुसार, फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की पहली खुराक के बाद वह 52%, जबकि दूसरी खुराक के बाद यह 95% प्रभावी है। वहीं ऑक्सफोर्डएस्ट्राजेनेका की वैक्सीन की पहली खुराक 64.1% और दूसरी खुराक 70.4% प्रभावी रही। वहीं पहली खुराक के बाद दूसरी आधी खुराक लेने वालों को 90% सुरक्षा मिली। मॉडर्ना की वैक्सीन पहली खुराक के बाद 80.2% और दूसरी खुराक के बाद 95.6 फीसद सुरक्षा प्रदान करती है।

काफी नहीं एक खुराक

प्री-क्लीनिकल ट्रायल के दौरान यह सामने आया था कि एक खुराक से पर्याप्त प्रतिरक्षा हासिल नहीं हुई। जबकि तीसरे चरण के ट्रायल में पहली खुराक की तुलना में दूसरी खुराक के बाद ज्यादा एंटीबॉडी और टी सेल बने। कई विशेषज्ञों का मानना है कि दूसरी खुराक को छोड़ना बड़ी गलती होगी।

प्रतिरक्षा विकसित होने में लगेगा वक्त

विशेषज्ञों का मानना है कि प्रतिरक्षा हासिल करने में समय लगता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के एक हिस्से को हम जन्मजात प्रतिरक्षा कहते हैं, जो तुरंत प्रतिक्रिया देती है। हालांकि आमतौर पर यह बीमारी को अपने आप रोक नहीं सकती है और वैक्सीन से प्रभावित नहीं होती है। वैक्सीन को अधिक प्रतिरक्षा कोशिकाएं बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिनमें से कुछ बदले में एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं।

ब्राजील वेरिएंट में भी कारगर

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन कोरोना के ब्राजील वेरिएंट में भी पूरी तरह कारगर है। आंकड़ों से हुए अध्ययन में यह भी सामने आया है कि नए वेरिएंट के लिए वैक्सीन में कोई भी परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं है।

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